चुनौतियों को स्वीकार करो - OSHO
उदासी, हताशा, क्रोध,निराशा,चिंता,पीड़ा, दु:ख सभी के साथ एक ही समस्या है कि तुम इनसे छुटकारा पाना चाहते हो यही एक मात्र बाधा है.
तुम्हें इनके साथ जीना होगा,तुम इन्हें छोड़ कर भाग नहीं सकते, यही वे परिस्थितियां है जिनके साथ जीवन को एक होना है और विकसित होना है. वे जीवन की चुनौतियां है, इन्हें स्वीकार करो. यह छिपे हुए उपहार है यदि तुम इन को छोड़कर भाग जाना चाहते हो, यदि तुम किसी तरह से इन से छुटकारा पाना चाहते हो, तब समस्या उठ खड़ी होती है क्योंकि जब तुम किसी भावना से छुटकारा पाना चाहते हो तो तुम उसे सीधे कभी नहीं देखते हो, तब वह भावना तुम से छिपने लगती है, क्योंकि तुमने निंदात्मक रवैया अपना लिया है. अब तब वह तुम्हारे अवचेतन की गहराई में समाती चली जाती है, तुम्हारे अंतःस्थल के सबसे अंधेरे कोने में छिप जाती ह, जहां तुम उसे खोज नहीं सकते हो. यह तुम्हारे अंत:स्थल के तलघर में चली जाती है और वहां छिप जाते हैं! और निस्संदेह यह जितनी गहराई तक जाती है, उतनी अधिक समस्या खड़ी कर देती है। क्योंकि तब वह तुम्हारे अंत:स्थल के अंजान कोनों से कार्य करना शुरू कर देती है।और तुम पूरी तरह असहाय हो जाते हो।
तो पहली बात यह है-दमन कभी मत करो, पहली बात है-कुछ भी हो स्वीकार करो! और इसे आने दो...इसे अपने सामने आ जाने दो।
असल में सिर्फ यह कह देना कि दमन मत करो,पर्याप्त नहीं है। यदि तुम मुझे अनुमति दो तो मैं कहूंगा इससे मित्रता करो, तुम उदास अनुभव कर रहे हो तो इससे मित्रता कर लो, इससे प्रति उदार रहो, उदासी का भी अपना अस्तित्व है, सहयोग करो, उसका आलांगीन करो, इसके साथ बैठो और इसका हाथ पकड़ो, मित्र बनो !इसके साथ प्रेम में रहो। उदासी सुंदर है, इससे कुछ भी गलत नहीं है.
तुम से किसी ने कहा कि उदास होने में कुछ गलत है? वास्तव में केवल उदासी ही तुम्हें गहराई दे सकती है।हंसी उथली है, प्रसन्नता तुम्हारी चमड़ी के थोड़ा भीतर तक जाती है. उदासी तुम्हारी हड्डी,मांस,मज्जा तक पहुंच जाती है. और कोई भाव इतने भीतर तक नहीं जा पाता जितनी की उदासी तो फिक्र मत करो इसके साथ बने रहो. और उदासी तुम्हें तुम्हारे अंतरतम तक ले जाएगी. तुम इससे आगे जा सकतेहो, और तुम स्वयं के बारे में कुछ ऐसी नई चीज जानने में सक्षम हो जाओगे,जिसको तुमने पहले कभी नहीं जाना थ. यह चीजें केवल उदासी की दशा में ही उभर कर आती है।खुशी की दशा में वे कभी भी नहीं उभरती है. अंधकार भी अच्छा है,और अंधकार भी दिव्य है। केवल दिन ही परमात्मा का नहीं है, रात भी उसी की है। इस दृष्टिकोण को में धार्मिक कहता हूं।
OSHO